अकबर बीरबल की कहानी - बच्चों को धैर्य से समझाएं

Akbar Birbal story in hindi (अकबर बीरबल की कहानी):

Akbar Birbal story in hindi

आजकल लोगों में धैर्य की मात्रा बहुत कम होती जा रही है। जिसका खामियाज़ा कई बार हमारे बच्चों को भुगतना पड़ता है। हम बाहर की परेशानी घर लेकर आते हैं और फिर बच्चों की कोई जिद या बाल सुलभ सवाल पूछने की आदत से परेशान होकर उन्हें डांट-डपट देते हैं या कई बार हाथ भी उठा लेते हैं।

कई बार बच्चों की जिद पर धैर्य बनाये रखना कितना मुश्किल हो जाता है, इसी को इंगित करती अकबर बीरबल की कहानी जरूर पढ़ें।

एक दिन की बात है – बीरबल दरबार में काफी देरी से पहुँचा। जब बादशाह अकबर ने उससे देरी से आने का कारण पूछा तो बीरबल बोला, “हुज़ूर! देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ पर मैं क्या करता, मैं तो समय से तैयार होकर दरबार के लिए घर से निकल ही रहा था कि मेरे बच्चे जोर-जोर से रोने लगे और ज़िद करने लगे कि आज मैं उनके साथ घर पर ही रहूँ। उन्हें बहुत मुश्किल से समझा पाया कि मेरा देरबार में हाज़िर होना बहुत जरूरी है। इसी में मुझे काफी समय लग गया और आने में देर हो गयी।”

बादशाह अकबर को लगा कि बीरबल बहानेबाज़ी कर रहा है।

बीरबल के इस उत्तर से बादशाह को तसल्ली नहीं हुई। वे बोले,”मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ। किसी भी बच्चे को समझाना इतना मुश्किल नहीं है, जितना तुमने बताया। इसमें इतनी देर तो लग ही नहीं सकती।”

बीरबल हँसता हुआ बोला,”हुज़ूर ! बच्चों पर गुस्सा करना या उन्हें डांटना-डपटना तो बहुत सरल है लेकिन किसी बात को विस्तार से समझा पाना बहुत कठिन।”

अकबर बोले, “मूर्खों जैसी बात मत करो। मेरे पास कोई भी बच्चा लेकर आओ। मैं तुम्हे दिखाता हूँ कि कितना आसान है ये काम।” बीरबल बोला “ठीक है जहाँपनाह, मैं खुद ही बच्चा बन जाता हूँ और वैसा ही व्यवहार करता हूँ। आप एक पिता की भांति मुझे संतुष्ट करके दिखाएँ।”

बीरबल ने छोटे बच्चे की तरह बरताव करना शुरू कर दिया।

उसने तरह-तरह के मुँह बनाकर अकबर को चिढ़ाया और किसी छोटे बच्चे की तरह यहाँ-वहां उछल-कूद करने लगा। उसने अपनी पगड़ी जमीन पर फेंक दी। फिर वह जाकर अकबर की गोद में बैठ गया और लगा उनकी मूंछों से छेड़छाड़ करने।

बादशाह कहते ही रह गए, “नहीं……….नहीं मेरे बच्चे! ऐसा मत करो। तुम तो अच्छे बच्चे हो न।” अकबर के ऐसा कहने पर बीरबल ने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। तब अकबर ने कुछ मिठाईयाँ लाने का आदेश दिया। एक सैनिक मिठाईयां  लेकर आ गया लेकिन बीरबल ने मिठाई को हाथ भी नहीं लगाया और जोर-जोर से चिल्लाता रहा।

अब बादशाह परेशान हो गए लेकिन उन्होंने धैर्य बनाये रखा। उन्होंने एक सैनिक को खिलौने लाने को कहा और खिलौने आने पर वह बीरबल से बोले,”बेटा! खिलौनों से खेलोगे ? देखो कितने सुन्दर खिलौने हैं।” बीरबल रोता हुआ बोला ,”नहीं,मैं तो गन्ना खाऊंगा।”

अकबर को लगा अब बच्चा मान जायेगा

उन्होंने तुरंत ही एक सैनिक को गन्ना लाने का आदेश दिया। थोड़ी ही देर में एक सैनिक कुछ गन्ने लेकर आ गया। लेकिन गन्ने देखकर भी बीरबल का रोना नहीं थमा। वह बोला,”मुझे बड़ा गन्ना नहीं चाहिए, छोटे-छोटे टुकड़े में कटा गन्ना दो।” अकबर ने एक सैनिक को बुलाकर कहा कि एक गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े कर दे। यह देखकर बीरबल और जोर से रोता हुआ बोला, “नहीं, सैनिक गन्ना नहीं काटेगा। आप खुद काटें इसे।”

अब बीरबल की इस फरमाइश पर बादशाह का मिज़ाज़ तो बिगड़ गया लेकिन अभी भी उन्होंने धैर्य बनाये रखा। अब बच्चे को मनाना था तो और कोई चारा भी नहीं था और इसलिए अकबर गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े करने लगे। गन्ने के टुकड़े करने के बाद उन्हें बीरबल के सामने रखते हुए अकबर बोले, “लो इसे खा लो बेटा।”

अकबर को उम्मीद थी कि इस बार बच्चा मान जायेगा क्योंकि उन्होंने बच्चे के सभी बातें मान ली है पर नहीं, बीरबल तो बच्चे की भांति फिर से मचलते हुए बोला, “नहीं, मैं तो पूरा गन्ना ही खाऊंगा।”

बादशाह ने एक साबुत गन्ना उठाया और बीरबल को देते हुए बोले, “लो पूरा गन्ना और रोना बंद करो।”

लेकिन बीरबल रोता हुआ ही बोला,” नहीं मुझे तो इन छोटे टुकड़ों से ही साबुत गन्ना बनाकर दो।”

“कैसी अज़ब बात करते हो तुम! भला यह कैसे संभव है ?” बादशाह के स्वर में अब क्रोध भर गया था।

लेकिन बीरबल रोता ही रहा। बादशाह का धैर्य जवाब दे चुका था। बादशाह बोले,”अब यदि तुमने रोना बंद नहीं किया तो तुम्हे मार पड़ेगी।”

अब बच्चे का अभिनय करता बीरबल उठ खड़ा हुआ

बीरबल हँसते हुए बोला,”नहीं…… नहीं! मुझे मत मारो हुज़ूर! मैं तो सिर्फ बच्चे का अभिनय कर रहा था आपको ये समझाने के लिए कि बच्चों की बेतुकी ज़िदों को शांत करना कितना मुश्किल काम है?”

बीरबल की बात से सहमत होते हुए  अकबर बोले, “हाँ ठीक कहते हो। रोते -चिल्लाते ज़िद पर अड़े बच्चे को समझाना बच्चों का खेल नहीं।”

दोस्तों मुझे लगता है ये स्थिति आमतौर पर हर घर की है। बच्चे जिद करते हैं, सवाल करते हैं, कई बार तो उन्हें समझाना भी मुश्किल हो जाता है कि जो वो चाहते हैं वैसा possible नहीं है और कई बार ऐसी जिद कि मुझे तो बस अभी का अभी चाहिए नहीं तो घर आसमान पर। ऐसी condition में गुस्सा आ जाना बिलकुल आम बात है पर मैं सच बताऊँ तो डांटने, डपटने या मारकर मैं अपनों बच्चों की कोई भी जिद या गलत आदत कभी नहीं बदल पाया। इसका तात्कालिक फायदा भले हो जाये पर long term में ये बच्चों के विकास के लिए नुकसान दायक ही है। इसलिए अपने तात्कालिक फायदे के लिए अपने बच्चों के विकास के साथ खिलवाड़ ना करें, उन्हें धैर्य से ही समझाएं और प्यार से हर मसले का हल निकालें।

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